हर सफलता में उनकी याद : स्वर्गवासी माता-पिता का अमिट आशीर्वाद
*लेखक : सन्तोष कुमार* 
कहते हैं जीवन की हर ऊँचाई किसी की दुआओं पर टिकी होती है। हर सफलता के पीछे कोई न कोई अदृश्य शक्ति होती है जो हमारे लिए ईश्वर से पहले प्रार्थना करती है। यही शक्ति होती है माता-पिता की दुआ और जब वे इस दुनिया में नहीं होते तब भी उनकी यादें,उनके संस्कार और उनका आशीर्वाद हर सफलता के क्षण में जीवित रहते हैं।
एक जिम्मेदार व्यक्ति जब किसी उपलब्धि तक पहुँचता है तो उसका मन सबसे पहले उन्हीं की ओर दौड़ जाता है उन माता-पिता की ओर जो अब साथ नहीं हैं, पर जिनकी दुआएँ हर कदम पर उसके साथ रही हैं। सफलता की हर सीढ़ी चढ़ते समय उसका दिल यही कहता है, “काश आज मां-पापा होते तो यह पल उनके नाम करता।”
माता-पिता का आशीर्वाद भले ही अदृश्य हो जाए लेकिन उनकी छाया हमेशा रहती है। उनके सिखाए मूल्य ही जीवन की दिशा बनते हैं। जिम्मेदार व्यक्ति जानता है कि जो वह आज है वह उनके संस्कारों और संघर्षों का परिणाम है। वे ही थे जिन्होंने मेहनत, ईमानदारी और धैर्य का पाठ पढ़ाया था। अब जब वह जीवन में आगे बढ़ता है तो हर उपलब्धि उनके नाम कर देता है क्योंकि वही उसकी प्रेरणा थे और वही उसकी ताकत हैं।
कई बार सफलता के मंच पर तालियाँ बजती हैं कैमरे चमकते हैं पर दिल में एक खामोशी रहती है उनकी अनुपस्थिति की खामोशी। वही खामोशी जिसे सिर्फ वह व्यक्ति महसूस करता है जिसने अपने माता-पिता को खोया है। फिर भी उस पल में आंखों से मुस्कान के साथ कुछ नम बूंदें गिरती हैं जो केवल याद नहीं बल्कि कृतज्ञता होती हैं।

माता-पिता और बच्चे का रिश्ता सिर्फ रक्त का नहीं बल्कि आत्मा का बंधन होता है। बच्चा जब इस दुनिया में आता है तो उसकी पहली पहचान मां के आंचल और पिता की उंगली से होती है। मां की गोद में उसे सुकून मिलता है और पिता के कंधे पर बैठकर वह दुनिया देखना सीखता है। यही वह क्षण होते हैं जब जीवनभर के लिए एक गहरा भावनात्मक संबंध बन जाता है ऐसा लगाव जो समय या दूरी से कभी कम नहीं होता।
मां की ममता और पिता का संरक्षण बच्चे की भावनाओं की सबसे मजबूत नींव रखते हैं। बच्चा जब गिरता है तो मां का हाथ उसे उठाता है और जब डरता है तो पिता का साहस उसे थाम लेता है। जीवन के हर मोड़ पर हर परीक्षा में बच्चे को कहीं-न-कहीं यह विश्वास रहता है कि उसके माता-पिता उसकी ढाल हैं। यही विश्वास उसे आत्मविश्वास में बदल देता है।
बचपन में माता-पिता बच्चे के लिए भगवान होते हैं और बड़े होने पर वही भगवान उसके अनुभव बन जाते हैं। वे उसकी सोच,उसके निर्णय और उसके जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। बच्चे का हर डर,हर सपना, हर सफलता सब कुछ उनके इर्द-गिर्द घूमता है। जब वे साथ नहीं रहते,तब भी उनकी सीखें दिल की गहराइयों में गूंजती रहती हैं जैसे कोई पुरानी लोरी अब भी कानों में बजती हो।
यह भावनात्मक लगाव ही वह कारण है कि जब बच्चा बड़ा होकर कुछ बनता है तो उसकी सबसे बड़ी ख्वाहिश यही होती है कि उसके माता-पिता उसे देखकर गर्व महसूस करें। और जब वे इस दुनिया में नहीं होते, तब यह ख्वाहिश उसकी आंखों में नम हो जाती है पर वह उनके नाम अपनी हर सफलता समर्पित करता है।
 
हर जिम्मेदार व्यक्ति अपने जीवन में चाहे कितनी भी ऊँचाइयाँ क्यों न छू ले, उसकी जड़ें वहीं होती हैं जहाँ उसके माता-पिता ने उसे संस्कार दिए थे। वे शायद सामने नहीं होते, लेकिन हर निर्णय में, हर कदम में उनकी शिक्षा झलकती है। 
जब कोई व्यक्ति किसी सफलता पर कहता है “यह मेरे माता-पिता का आशीर्वाद है” तो वह केवल भावनात्मक वाक्य नहीं होता वह एक सच्ची अनुभूति होती है।
माता-पिता चले जाएँ तब भी उनका आशीर्वाद हवा की तरह चारों ओर फैला रहता है। वह अदृश्य शक्ति जो हर मुश्किल में सहारा देती है, वही हमें गिरने से रोकती है,वही हमें आगे बढ़ाती है। जो व्यक्ति अपनी सफलता में अपने स्वर्गवासी माता-पिता को याद करता है,वह दुनिया को यह संदेश देता है कि रिश्ते समय या दूरी से नहीं,भावना और कृतज्ञता से जुड़े होते हैं।
ऐसे व्यक्ति के लिए सफलता केवल उपलब्धि नहीं,बल्कि श्रद्धांजलि बन जाती है अपने माता-पिता के नाम एक समर्पण। वह जानता है कि उसकी हर उपलब्धि में उनके सपनों की झलक है,उनके त्याग की छाप है। यही सच्ची सफलता है जब कोई अपनी ऊँचाई पर पहुँचकर भी अपने आधार को न भूले।
क्योंकि आखिर में जीवन का सबसे सच्चा पुरस्कार वही होता है, जब हम कह सकें कि —
*मां-बाप भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं,पर मेरी हर सफलता उनकी यादों की माला में एक नया फूल बनकर जुड़ती है।* 

 *लेखक:* 
सन्तोष कुमार
संपादक, दैनिक अमन संवाद
(सामाजिक सरोकारों पर लिखने वाले स्वतंत्र पत्रकार, भोपाल)
📞 9755618891
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