*लेखक: सन्तोष कुमार*
दीपावली का पर्व केवल रोशनी और उल्लास का प्रतीक नहीं, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश भी देता है। यह वही अवसर होता है जब समाज में अच्छे और बुरे, सत्य और असत्य, नियम और अराजकता के बीच का फर्क और स्पष्ट हो जाता है। इसी सच्चाई को सार्थक करते हुए मध्यप्रदेश पुलिस ने इस दीपावली पर जिस तरह से अवैध जुआ-सट्टा नेटवर्क पर नकेल कसी, वह न केवल एक पुलिस कार्रवाई थी, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी कि अपराध चाहे कितना भी गुप्त क्यों न हो, कानून की रोशनी उससे अधिक शक्तिशाली है। इस व्यापक राज्यव्यापी अभियान के सूत्रधार रहे पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाणा, जिन्होंने अपने नेतृत्व, दृष्टि और संगठनात्मक दक्षता से यह सिद्ध कर दिया कि सशक्त और नैतिक पुलिसिंग किसी भी समाज में स्थायी शांति की नींव बन सकती है।
दीपावली से पहले शुरू किए गए इस विशेष अभियान का उद्देश्य स्पष्ट था त्योहारों के दौरान शांति, सुरक्षा और सामाजिक अनुशासन बनाए रखना। लेकिन इसकी सफलता इस बात में है कि यह केवल “अभियान” नहीं रहा, बल्कि यह कानून और नैतिकता का संगम बन गया। मकवाणा के निर्देशन में पुलिस ने राज्य के हर जिले में सतर्कता और सजगता का प्रदर्शन किया। नतीजा यह हुआ कि ₹65.31 लाख की नकदी बरामद हुई, सैकड़ों आरोपी गिरफ्तार किए गए और करोड़ों रुपये की अवैध संपत्ति जब्त की गई। लेकिन आंकड़ों से अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि इस कार्रवाई से अपराधियों में भय और नागरिकों में भरोसा दोनों बढ़े।
डीजीपी मकवाणा की नेतृत्व शैली की सबसे बड़ी विशेषता है उनका संतुलित दृष्टिकोण जहाँ एक ओर वे अपराध पर कठोर कार्रवाई को अनिवार्य मानते हैं, वहीं दूसरी ओर पुलिस को जनता के प्रति संवेदनशील बनाने पर भी उतना ही बल देते हैं। उन्होंने अपने सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को साफ संदेश दिया कि “कानून की सख्ती के साथ समाज का विश्वास भी बनाए रखना है।” यही संतुलन उनके नेतृत्व की पहचान है। दीपावली अभियान में भी यही संतुलन दिखा पुलिस ने न केवल छापामारी की, बल्कि स्थानीय स्तर पर जनजागरूकता कार्यक्रम भी चलाए ताकि लोग खुद ऐसी अवैध गतिविधियों से दूर रहें।
राज्य के कई जिलों में पुलिस की उल्लेखनीय सफलता डीजीपी की रणनीतिक निगरानी का परिणाम रही। विदिशा में पुलिस अधीक्षक रोहित काशवानी के नेतृत्व में ₹22.22 लाख की बरामदगी हुई। छिंदवाड़ा के नवेगांव क्षेत्र में जंगल के बीच चल रहे जुए के अड्डे पर छापेमारी के दौरान ₹9.67 लाख मूल्य का मशरूका जब्त किया गया। अनूपपुर (बीजुरी) में ₹6.10 लाख की नकदी और सिहोर (भैरूंदा) में ₹5.25 लाख की बरामदगी के साथ 17 जुआरी गिरफ्तार किए गए। छतरपुर, राजगढ़, मंदसौर और ग्वालियर में संयुक्त रूप से ₹12 लाख से अधिक की संपत्ति जब्त की गई। इन सफलताओं ने यह दिखाया कि जब नेतृत्व स्पष्ट दिशा देता है तो पूरी पुलिस मशीनरी एक साथ उसी लक्ष्य की ओर बढ़ती है।
मकवाणा का यह अभियान केवल अपराध पर नियंत्रण भर नहीं, बल्कि समाजिक सुधार का भी प्रयास है। वे जुआ-सट्टे को केवल आर्थिक अपराध नहीं मानते, बल्कि इसे सामाजिक विकृति कहते हैं जो परिवारों और युवाओं को भीतर से खोखला करती है। उनका मानना है कि अपराध केवल पुलिस के लिए चुनौती नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। इसी सोच के तहत उन्होंने प्रत्येक जिले को निर्देशित किया कि स्थानीय स्तर पर जनसहभागिता के माध्यम से ऐसे अपराधों के खिलाफ जागरूकता फैलाएँ। यह दृष्टिकोण पुलिसिंग को “दंड” से आगे बढ़ाकर “प्रेरणा” का माध्यम बनाता है।
डीजीपी मकवाणा अपने अधिकारियों और जवानों से हमेशा कहते हैं “अपराध पर सख्त रहो, लेकिन नागरिक से संवेदनशील रहो।” यह वाक्य अब मध्यप्रदेश पुलिस की कार्यसंस्कृति का हिस्सा बन चुका है। उनके नेतृत्व में पुलिस का रवैया प्रतिक्रियात्मक से सक्रिय हुआ है। अब अपराध के घटित होने का इंतजार नहीं, बल्कि उसकी रोकथाम पर ध्यान है। इस सोच ने पुलिस के कामकाज में एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास भरा है।
दीपावली अभियान के दौरान एक और बात विशेष रूप से उल्लेखनीय रही डीजीपी मकवाणा की टीम भावना। उन्होंने हर जिले के एसपी से प्रतिदिन संवाद बनाए रखा, हर महत्वपूर्ण कार्रवाई पर खुद अपडेट लिया और अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से सराहा। यह वही नेतृत्व शैली है जिसमें आदेश से अधिक सहयोग की भावना होती है। परिणामस्वरूप, प्रदेशभर की पुलिस टीमों ने अपने-अपने स्तर पर उत्साहपूर्वक कार्यवाही की। जब अधिकारी अपने शीर्ष नेतृत्व से प्रेरणा पाते हैं, तो मैदान में परिणाम स्वतः दिखते हैं मध्यप्रदेश की इस मुहिम ने यही साबित किया।
इस सघन अभियान का सामाजिक प्रभाव भी गहरा है। पुलिस की सख्ती से जहाँ अपराधियों में भय का माहौल बना, वहीं नागरिकों में सुरक्षा और विश्वास की भावना मजबूत हुई। कई जिलों में लोगों ने खुद आगे आकर पुलिस को सूचना दी, जिससे दबिशें और प्रभावी हुईं। यह पुलिस और जनता के बीच भरोसे के उस रिश्ते की पुनर्स्थापना है जिसकी नींव किसी भी लोकतांत्रिक समाज में अनिवार्य है। मकवाणा इसे पुलिस की सबसे बड़ी सफलता मानते हैं। उनके शब्दों में “जब नागरिक पुलिस पर भरोसा करता है, तब अपराध अपने आप कमजोर पड़ जाता है।”
डीजीपी मकवाणा के कार्यकाल में पुलिसिंग की सोच में एक स्पष्ट परिवर्तन देखा जा रहा है। वे “स्मार्ट पुलिसिंग” को केवल तकनीकी दक्षता के रूप में नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण के रूप में परिभाषित करते हैं। उनके अनुसार, आधुनिक पुलिस वही है जो अपराध पर नियंत्रण के साथ समाज में विश्वास और नैतिकता की भावना भी जगाए। दीपावली का यह अभियान इसी सोच की जीवंत मिसाल बना।
राज्य में बढ़ती शहरीकरण और तकनीकी बदलावों के बीच अपराध के स्वरूप भी जटिल होते जा रहे हैं ऐसे में एक ऐसा नेतृत्व जो तकनीक, कानून और समाज, तीनों के बीच सामंजस्य स्थापित कर सके, वही वास्तव में प्रभावी कहा जा सकता है। मकवाणा ने इस दिशा में कई नवाचार किए हैं साइबर निगरानी को मजबूत करना, खुफिया तंत्र को सक्रिय रखना और पुलिसकर्मियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना। इन प्रयासों ने पुलिस बल को अधिक सक्षम, सजग और जिम्मेदार बनाया है।
दीपावली अभियान इस पूरी दृष्टि का एक प्रत्यक्ष उदाहरण था। जब राज्य के कोने-कोने में पुलिस टीमें मुस्तैदी से तैनात थीं, तब मकवाणा का संदेश स्पष्ट था “त्योहार की सच्ची रोशनी तभी है जब समाज सुरक्षित हो।” यह वाक्य उनके नेतृत्व दर्शन का सार है। वे पुलिस को केवल कानून लागू करने वाली संस्था नहीं, बल्कि समाज के नैतिक प्रहरी के रूप में देखते हैं।
अभियान के बाद जो परिणाम सामने आए, वे प्रेरक हैं। अवैध जुआ-सट्टा नेटवर्क में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई, अपराधियों के हौसले पस्त हुए और आम जनता ने राहत की साँस ली। सोशल मीडिया पर “#SafeDiwaliMP” जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। नागरिकों ने खुद इस अभियान की सराहना की और पुलिस के साथ खड़े हुए। जब प्रशासनिक सख्ती जनता की सहमति से जुड़ जाती है, तो उसका प्रभाव दुगुना होता है।
आज मध्यप्रदेश पुलिस की छवि एक सशक्त, अनुशासित और संवेदनशील बल के रूप में बन रही है। इसके पीछे वह दृष्टि है जिसे डीजीपी कैलाश मकवाणा ने अपने नेतृत्व से स्थापित किया है कानून का भय अपराधी में, लेकिन सुरक्षा का विश्वास नागरिक में। दीपावली के इस अभियान ने इस विचार को वास्तविक रूप दिया है।
संपादकीय दृष्टि से देखें तो यह केवल एक पुलिस अभियान नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन की उस नई सोच का प्रतीक है जिसमें सुरक्षा और सामाजिक सुधार एक साथ चलते हैं। मकवाणा के नेतृत्व में पुलिस ने यह दिखाया कि जब इरादा साफ हो, रणनीति ठोस हो और नेतृत्व प्रेरणादायी हो, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं रहती। दीपावली की यह “रोशनी” इस बार सिर्फ घरों तक नहीं, बल्कि समाज के मन तक पहुँची है अपराध के अंधकार पर कानून की उजली जीत के रूप में।
*लेखक*
सन्तोष कुमार